किसी भी देश की सच्ची संपत्ति संतजन ही होते हैं। विश्व के कल्याण हेतु जिस समय जिस धर्म की आवश्यकता होती है उसका आदर्श स्थापित करने के लिए स्वयं भगवान ही तत्कालीन संतों के रूप में अवतार लेकर प्रगट होते हैं। वर्तमान युग में संत श्री आसाराम जी बापू एक ऐसे ही संत हैं, जिनकी जीवनलीला हमारे लिए मार्गदर्शनरूप है।
जन्मः विक्रम संवत 1998, चैत्र वद षष्ठी (गुजराती माह अनुसार), (हिन्दी माह अनुसार वैशाख कृष्णपक्ष छः)।
जन्मस्थानः सिंध देश के नवाब जिले का बेराणी गाँव।
माताः महँगीबा।
पिताः थाउमल जी।
बचपनः जन्म से ही चमत्कारिक घटनाओं के साथ तेजस्वी बालक के रूप में विद्यार्थी जीवन।
युवावस्थाः तीव्र वैराग्य, साधना और विवाह-बंधन।
पत्नीः लक्ष्मीदेवी जी।
साधनाकालः गृहत्याग, ईश्वरप्राप्ति के लिए जंगल, गिरि-गुफाओं और अनेक तीर्थों में परिभ्रमण।
गुरूजीः परम पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज।
साक्षात्कार दिनः विक्रम संवत 2021, आश्विन शुक्ल द्वितिया। आसुमल में से संत श्री आसारामजी महाराज बने।
लोक-कल्याण के उद्देश्यः संसार के लोगों को पाप-ताप, रोग, शोक, दुःख से मु्क्तकर उनमें आध्यात्मिक प्रसाद लुटाने संसार-जीवन में पुनरागमन।
पुत्रः श्री नारायण साँईँ।
पुत्रीः भारती देवी।
प्रवृत्तियाँ: कर्म, ज्ञान और भक्तियोग द्वारा परमात्म-प्रसाद का अनुभव कराने हेतु देश-विदेशों में करीब 130 से अधिक आश्रम एवं 1100 श्री योग वेदान्त सेवा समितयों द्वारा समाज में रचनात्मक एवं आध्यात्मिक सेवाकार्य।
जन्मः विक्रम संवत 1998, चैत्र वद षष्ठी (गुजराती माह अनुसार), (हिन्दी माह अनुसार वैशाख कृष्णपक्ष छः)।
जन्मस्थानः सिंध देश के नवाब जिले का बेराणी गाँव।
माताः महँगीबा।
पिताः थाउमल जी।
बचपनः जन्म से ही चमत्कारिक घटनाओं के साथ तेजस्वी बालक के रूप में विद्यार्थी जीवन।
युवावस्थाः तीव्र वैराग्य, साधना और विवाह-बंधन।
पत्नीः लक्ष्मीदेवी जी।
साधनाकालः गृहत्याग, ईश्वरप्राप्ति के लिए जंगल, गिरि-गुफाओं और अनेक तीर्थों में परिभ्रमण।
गुरूजीः परम पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज।
साक्षात्कार दिनः विक्रम संवत 2021, आश्विन शुक्ल द्वितिया। आसुमल में से संत श्री आसारामजी महाराज बने।
लोक-कल्याण के उद्देश्यः संसार के लोगों को पाप-ताप, रोग, शोक, दुःख से मु्क्तकर उनमें आध्यात्मिक प्रसाद लुटाने संसार-जीवन में पुनरागमन।
पुत्रः श्री नारायण साँईँ।
पुत्रीः भारती देवी।
प्रवृत्तियाँ: कर्म, ज्ञान और भक्तियोग द्वारा परमात्म-प्रसाद का अनुभव कराने हेतु देश-विदेशों में करीब 130 से अधिक आश्रम एवं 1100 श्री योग वेदान्त सेवा समितयों द्वारा समाज में रचनात्मक एवं आध्यात्मिक सेवाकार्य।